सौ ग्राम आँसू - एक कहानी


यह जरूरी नही है की आँसुओं वाली सारी कहानियाँ रोने धोने से ही शुरू हों। उदहारण के तौर पर हम इसे  20 मिनट में त्वचा गोरी करने वाले नुस्खों से शुरू करेंगे।
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यह आश्चर्य होगा कि जब विनोद पंतालिया पचास रुपये को सौ रुपये में बदल रहा था,
 ठीक उसी वक़्त रजनी
त्वचा गोरी करने का एक बढ़िया रामबाण नुस्खा आज़मा रही थी
सामने कीमती टेलीविज़न में बताया जा रहा था  इसे लिख लें और आज़माएँ-
- " सबसे पहले सौ ग्राम.....चर्र्र्ड च्र्रर"
और लाइट चली गई, टेलीविजन में त्वचा गोरी करने का रामबाण नुस्खा बताने वाली सुंदर कन्या कई देर तक टेलीविजन का आकार बनी रही।

रजनी ने फोन उठाया
- सर्दी की वजह से मेरी हिम्मत छूट रही है।
- तो ?
-तुम आ जाओ मेरी जान
- मैं बिज़ी हूँ।
- क्या?  तुम्हें मेरी याद नही आई ?
- राहुल ! मुझे कुछ चाहिए !!
- क्या ?
- पता नहीं, पर सौ ग्राम ही चाहिए।

फोन काट गया।  पर फोन का आविष्कार करने वाला महान वैज्ञानिक इस बात से अनजान ही था की  कहीं किसी घर के आगे एक आदमी मरकर लटकेगा और टेलीविजन  वाली कन्या इस बात से अनजान ही रही की एक लड़का पचास रूपए को सौ रुपये में बदल सकता है।

खैर, मेरे हिसाब से अब कहानी को कथित रूप से शुरू की जानी चाहिये।

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बगल वाले घर में एक आदमी अपनी औरत से झगड़ रहा है...
ऊपर एक सरदारजी मूँछों पर दही लगा रहे हैं...
पास वाले घर को अमरजीत बड़वा का घर नाम से पुकारा जाता है और देहलीज़ पर एक फटा पोस्टर यह बताता है की इस घर में आने वाले का स्वागत होता है, पोस्टर पर दो हाथ भी हैं जिनमे गुलाब का फूल है।
अमरजीत की बड़ी बेटी रजनी है और उसे किसी राहुल मवानी से प्यार है।
यह शायद रात के कोई ग्यारह बजे का वक़्त है।
 खिडकी के परदे के पार जलता हुआ बल्ब बडे सूरज की तरह चमक रहा है। सब दरवाजे बंद हैं, सब खिडकियों पर काले पीले परदे हैं,
लेकिन रजनी के शरीर के हर हिस्से में जिंदगी की खनक है।

बस, राहुल के आने भर की देर है।
आते ही रजनी का रोम रोम तो खडा हो जाएगा।
यह प्यार का काम भी बडा बेहूदा है। पर किया क्या जाए?

राहुल का घर गांव के सबसे अंत में है वह एक गरीब परिवार से है, यह बहुत बाद में पता चला।
 राहुल किसी दोस्त को कह रहा है, 'यार शुरू-शुरू में जब मैं वहाँ गया था तो दीवानचंदजी ने बडी मदद की थी मेरी।'
- दीवानजी ?
-हाँ, उनकी वेल्डिंग की दूकान थी।
भगवान ने उसको समेत दुकान चक लिया पिछले शनिवार।
लोग बहुत मानते थे उन्हें।
- मुझे क्या करना है।
- तूँ निचे खड़ा रहना, मैं बस एक आधा घण्टा ही मिलकर आता हूँ रजनी से।
कोई पंगा न हो यार, इसलिए यह जरूरी है, हम जल्द ही भागकर शादी कर लेंगे यार।
और तेरे अहसान मैं इस जन्म में तो नही चूका पाउँगा।
- चल ठीक है यार। तूँ तो मेरा जिगर है।


दोस्त, जो राहुल और रजनी को मिलाने के लिए बारह बजे से एक बजे तक सर्दी में खड़ा रहने के बारे में सोच रहा था, वह राहुल का पड़ोसी था और उसका नाम कुछ भी था....याद नही।

बारह बजे यह सीन हुआ, की राहुल रजनी के घर का दरवाज़ा और उसके माँ बाप को पार करके ऊपर पहुंच गया, रजनी के कमरे में।
निचे घर के आगे, एक सरकारी नलके के पास राहुल का दोस्त खड़ा खड़ा चने चबा रहा था और यह सोच रहा था कि गली में कोई आये तो वह राहुल की कितनी मदद कर पाये,
फिर भी ऊपर कमरे में रजनी की बाँहों में मजनू की तरह लिपटा राहुल इस निश्चित था। कोई दोस्त उसकी परवाह के लिए इतनी रात में सहायता करता है। थोड़ी दूर गांव के लगभग बीच में रामलीला भी आयोजित होती थी।
और संयोग से आज यह हनुमानजी का लंका जलाने वाला दृश्य था।
निचे खड़े लड़के ने रामलीला के बारे में अक्सर सोचा था लेकिन कभी देखा नहीं था, और कभी भी गांव की रामलीला को नहीं देखा था,
गांव के बीचों बीच एक खुला मैदान और ढेर सारे लोग जो दर्शक थे, नौ बजे तक आकर भीड़ अपनी अपनी जगह बना लेते थे।
जहाँ गाँव के तीन आदमी भी इस रंगमंच पर अलग अलग अभिनय निभा रहे थे। और एक सरदारजी भी देवता बनकर आए हुए थे।
हालाँकि निचे खड़ा लड़का, (सुविधा की दृष्टि से हम इसे कोई भी नाम दे सकते हैं) यह बेनहाया सा, हरी चादर ओढ़े लेखक की तरह कट्टर नास्तिक था। और इसने किसी को भी ईश्वर के 'असली' रूप में नही देखता था।



उपर प्रेमी जोड़ा प्यार के सागर में गोते लगा रहा था, और नीचे वह पहरेदार लड़का थककर बैठ गया।
समय लगभग साढ़े बारह का था।

इधर रामलीला मंचन में हनुमानजी का रोल लिए हुए सत्यप्रकाश ओझा जी अपनी पूँछ में आग लगाने को आगे बढ़े।
प्रोग्राम पहले से फिक्स था, रुई की लम्बी सी पूँछ पर आग लगानी थी और एक बड़ी सी सूखी झाड़ी को सौ ग्राम केरोसिन डालकर हाथ में लिए दस - बारह मिनट तक लंका जलाने का सीन होना था।
प्रोग्राम के मुताबिक सीन चला।
लेकिन एक हवा का तेज़ झोंका आया और जलती हुई झाड़ी से कुछ चिंगारियां दर्शकों की और चली गयी।
भीड़ में बैठा एक अधेड़ उम्र का आदमी ( जो रंगमंच का ज्यादा लुत्फ़ लेने के लिए सबसे आगे बैठा था, हालाँकि वह रामलीला से ज्यादा ध्यान बुधराम पर देता था ) उस चिंगारी से झुलस गया,
यह सब इतना तीव्र गति से हुआ की
भगवान राम का रोल लिए पर्दे के पीछे फेसियल करवाते हुए मेघनाद यानि पास के गांव का लड़का राममनोहर यह सीन देख ही नही देखा।
अब भीड़ में हड़कम्प मचा और अगला सीन इस तरह हुआ की
जलते हुए आदमी को बचाने के लिए दो तीन और झुलस गए।
भीड़ तितर बितर होने लगी , रामलीला स्थगित हुई और तीनों झुलसे हुए लोगो को पास के गांव में हॉस्पिटल ले जाने के लिए व्यवस्थाएं हुई।
भीड़ में एक नौजवान चिल्लाया की सत्यप्रकाश तेरे बाप को जलाकर मारना चाहता है, इतना सुनते ही झुलसे हुए आदमी का लड़का रंगमंच की तरफ दौड़ा , अभी वह दौड़ा ही था की एक शादीशुदा औरत से टकरा गया, यह जीतो थी, जो सरदारजी की पत्नी थी।
और सरदारजी रामलीला में रावण का लीड रोल में थे।
लड़का हड़बड़ाहट में जीतो के ऊपर गिर गया। जीतो चिल्लाई।
यह सीन सरदारजी ने अपनी आँखों से देखा और उन्हें लगा की भीड़ का फायदा उठाकर कोई नौजवान उसकी जीतो का घी जैसा शरीर चूमना चाहता है।
जीतो थी भी इतनी सुंदर और महकने वाली, गांव में चलती तो देशी घी जैसी खुशबू तीन-तेन किलोमीटर तक फ़ैल जाया करती थी।
अब भीड़ में से कोई पचास साठ लोग उन झुलसे लोगों को छोड़कर सरदारजी के नेतृत्व में लड़के को पीटने आगे बढ़े, उनमें से आधे वे लोग थे जो जीतो को 'उस' नज़र से देखते थे और बाकि 'नज़र' को छोड़कर जीतो का सबकुछ पा लेना चाहते थे और उस पर जान छिड़कते थे।
(यह बात राहुल और रजनी को बाद में मालूम हुई )
जीतो के ऊपर गिरने वाला लड़का अपने उम्र के लड़कों की टोली का मुखिया था, और आगे हुआ यूँ जो लोग सोना चाहते थे वे घरों को चले गए और बाकि मज़्ज़े लेने वाले बचे हुए थे। सरदारजी रावण के दस सर सम्हालते हुए आये और लड़के मुंह पर तीन घूंसे जड़ दिए इसके साथ ही भीड़ दो खेमों में बंट गई।
एक पार्टी लड़के की और से और दूसरी सरदारजी की और से।
लड़के की पार्टी में दस पन्द्रह जवान मुस्टंडे थे और वे लाठिया ंऔर बाकि औज़ार लेने एक बढई की दुकान की और दौड़े, जो उस गली में थी जहां सरबजीत का घर मुहाने पर था।
दुकान पर उन मुस्टंडों को लाठिया और डंडे मिलने की सम्भावना थी और वे सरदारजी समेत बाकि लोगों का सर फोड़ देना चाहते थे।
गांव में काफी अफरा तफरी मच गई और भीड़ का एक टोला लड़के की पार्टी ढूंढता हुआ गांव के अँधेरे में फ़ैल गया।
हालाँकि अँधेरा इतना था की ज्यादा दूर तक तो नही, पर आसपास देखा जा सकता था।
जहां राहुल-रजनी का वह पहरेदार खड़ा था, उसने अपनी और लड़कों का टोला आता हुआ देखा।
वह घबरा गया और उसने सोचा की गांव वाले अनैतिक प्रेमी जोड़े के साथ साथ उसकी भी हत्या कर देंगे, सो वह उनको देख कर राहुल! राहुल!! चिल्लाते हुए भागा।
लाठियां लेने आये मुस्टंडों ने उसे सरदारजी की पार्टी का समझ लिया और उसे घेर लिया।
उसको पीटने लगे और काफी मार खाकर वह गश खाकर गिर गया।
हल्ला सुनकर राहुल छत से सीधा ही निचे कूद गया। रजनी के माँ बाप जाग गए, नींद उन्होंने गांव की कोई छोटी मोटी लड़ाई समझी और वापिस सो गए, इस तरह रजनी नही पकड़ी गयी और राहुल अंघेरे में कहीं भाग गया।
इतने में सरदारजी समेत कुछ लोग वहां पहुंचे उनके हाथों में अलग अलग हथियार थे जैसे - हनुमानजी की गदा, लकड़ियाँ, फट्टे और कईयों के पास घरों से जल्दबाज़ी में लाये हुए चाकू छुरे।
उनके पास बैटरियां भी थी। दोनों पार्टियों में जमकर मुठभेड़ हुई और
पहरेदार लड़के ने भागने से पहले सत्यप्रकाश ओझा रूपी हनुमानजी को देखा और दिमाग पर चोट खाने की वजह से वह उसे असली देवता समझ बैठा और पागल होकर "जय हनुमान! जय हनुमान !!" चिल्लाते हुए भागा।
उसकी चीख पुकार इतनी तेज़ थी की आस पड़ोस में सोये हुए लोग भी उठ गए और घरों से बाहर निकलकर ताम झाम देखा, यह दृश्य देखकर और "जय हनुमान जय हनुमान" के नारे सुनकर नींद में उठे लोगों ने समझा की गांव में हिन्दू मुस्लिमों की लड़ाई हो रही है।
और वे भी इस अभियान में भाग लेने दौड़े।



रात भर गांव की अफरा तफरी और भयंकर लड़ाई के बीच रामेश्वर भिराई की लड़की सलोनी, जो किसी नदीम नाम के लड़के से प्यार करती थी, पूरी रात संभूदयाल से लड़ती रही। वह रजनी की सहपाठी थी कभी कभी रजनी को राहुल के बारे में बताया करती थी। सत्यप्रकाश जी को रामलीला चक्कर अपनी बीवी से भी हाँथ धोना पड़ा।
 अमरसिंह जो कि रावण का अभिनय कर रहे थे सीता माता को अशोक वाटिका में ही छोड़कर सीधे अमरजीत के घर मोटर साईकिल से पंहुच गए,
और जान बचाने की रहम मांगी, अमरजीत की बीवी रसोई में आलू छीलती हुई यह सब देखकर मुस्कुराई।
अमरसिंह को लगा की वह अपने भाई के पैरों में गिर चुका है और वह उसे कहीं छुपा लेगा इसलिये पनतालियों को उसका पता नही लगेगा और अमरजीत के घर में अमरसिंह को ढूँढने का कोई सोच भी नही सकता।
इस तथ्य को सिद्धांत समझकर अमरसिंह जी ने रावण का वेश उतारा और कई देर तक बाथरूम में छुपकर फेसियल धोते रहे।
इधर पहरेदार लड़का जो हनुमानजी के साक्षात् दर्शन होने से पगला गया था, जीतो पर सशरीर गिरने वाले लड़के ने उस रहम खाई और उसको टेलीफोन की तरह उपयोग करने का विचार रखा गया।
उसको यह समझाया गया की पास वाले गांव से सभी पनतालियों को बुला लाये और बड़वों को आज रात में खत्म कर दे। पचास रूपए के नोट पर उसे यह लिखकर दिया गया -
"पनतालियों एक हो जाओ, और बड़वों को मार डालो।
इन्होंने तुम्हारे भाइयों को मार दिया है"

अब पास वाला गांव चार किलोमीटर था और साईकिल से पहुंचने में लगने वक़्त लड़ाई को किसी भी दिशा में ले जा सकता था।
इसलिए कोई मोटरसाइकिल की व्यवस्था होनी थी।
राम के छोटे भाई भरत ने अचानक अमरजीत के घर के आगे मोटरसाइकिल देखी और तीर कमान फेंकते हुए साधन!! साधन !! चिल्लाया।
यह अमरसिंह की मोटरसाइकल थी और वह अपनी जिंदगी बचाने की मश्क्क्त में मोटरसाइकल बाहर ही भूल गया, चाबी भी उसमे रही।
पहरेदार लड़के ने पचास रुपये का नोट मुट्ठी में भींचा और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के रवाना हुआ।
मुस्टंडे मोटरसाइकल को पहचान गए और उन्हें आशंका हुई की अमरसिंह , अमरजीत के घर है।
उन्हें बाथरूम से घसीट कर बाहर लाया गया और पीटा गया।

इधर पहरेदार लड़के ने मोटरसाइकिल बीच रस्ते रोकी और पचास रुपये की जगह सौ में संदेश रुपये देकर आने की सोची।
उसने जेब से सौ रुपये का नोट निकाला और उस पसर लिखा -
"हिन्दुओ एक हो जाओ, और मुसलमानों को मार डालो।
इन्होंने तुम्हारे भाइयों को मार दिया है"
वह न्यूटन के गति के तीनों नियमो के अनुसार उस गांव में पहुंचा और कई लोगों को आधी रात उठाकर यह नोट पकड़ा दिया।
दूसरे गांव के कुछ हिंदुओं को लगा की उनकी अस्मिता पर संकट आया है।
आधे घण्टे बाद यानि रात के लगभग एक बजे कई लोग पेट्रोल, माचिस और तलवारें लेकर घटना स्थल पर पहुंच गए, ये लोग न तो रामलीला देखने वाले थे और न ही किस पार्टी के।
इन लोगों ने गांव के कई घरों को जल दिया और कइयों को मौत के घाट उतार दिया।
जीतो के एक पुराने आशिक और जीतो पर गिरने वाले लड़के के जिगरी दोस्त ने अमरसिंह को मारने की घोसणा कर दी।
 यह इसलिए हुआ की दस साल पहले गांव में बड़वा और पनतालिया दो जातियों में भयंकर लड़ाई हुई थी।
और रामलीला के सरदारजी जी नाम से कोई 'अमरसिंह' थे, वे बड़वा थे।
अब लड़ाई पुरानी रंजिश का विकराल रूप लिए हुए थी।
यह भयंकर लड़ाई इतनी तेज़ गति से बढ़ी, आप अंदाजा लगा सकते हैं की रामलीला के सारे पात्रों को मुखौटे पर बाकि अश्त्र शश्त्र उतारने का वक़्त ही नही मिला।
हत्याओं और मार काट का सिलसिला भोर के 3 बजे अमरसिंह की मौत के साथ रुका।
अमरसिंह , अमरजीत का बड़ा भाई था लेकिन पिछले बीस वर्षों से उनकी कभी नही बनी। उनके बूढ़े माँ बाप भी दोनों भाइयों को समझाते हुए मरे।
बड़वों और पनतालियों की लड़ाई में भी अमरजीत ने पनतालियों का सहयोग किया था।

सुबह दस बजे पुलिस आने से पहले अमरसिंह की लाश उसके घर के सामने इसा मसीह की तरह लटकाई गई, पनतालियों के लड़कों ने उसके हाथ में कीलें ठोंकी और तड़फती रोती जीतो को घसीट कर कमरे में ले जाकर बन्द कर दिया।
यह घटना अमरजीत ने अपनी बीवी समेत देखी और 'मीठी मीठी' हंसी हंसते हुए घर आकर रेडियो पर लता मंगेश्कर का गाने सुने।
पहरेदार लड़का अब कुछ सामान्य हुआ पर उसका पागलपन कम होने के साथ साथ उसे सत्यप्रकाश जी, आदमी ही लगे।
पर जब दरवाज़े पर अमरसिंह जी की लाश टँगी देखी और भगवान राम का रूप लिए हुए बुधराम जमालिया को भीड़ में पहचाना इससे वह फिर उसी पागलपन की स्थिति में चला गया और उसने समझा की भगवान राम साक्षात् प्रकट हो गए है और उन्होंने रावण वध कर दिया है।
भीड़ को चीरते हुए उसने बुधराम जमालिया के पैर पकड़ लिए।

 पनतालियों के लड़के इस बात पर बहुत गर्व करते हैं की उन्होंने बदला ले लिया और जेल जाते हुए कहते हैं कि प्रति वर्ग किलोमीटर के हिसाब से कत्ल करने मे  हमारा कोई सानी नही है।

जब एक सौ सत्तावन कत्लों के साथ अमरसिंह जी स्वर्ग पहुंचे,
उस वक़्त दीवानचंद जी की दुकान में राहुल और रजनी एक दूसरे की बाँहों में लिपटे चुम्बन ले रहे थे
और बात कर रहे थे -

- कितनी लड़ाई हुई गांव में राहुल !!
- हाँ जान, बहुत बुरा हुआ
- तुम कल रात कहाँ भाग गए थे?
 मैं पूरी रात सो नही पाई, देखो मेरी आँखें बहुत लाल हैं, नींद की वजह से...
- मैं तुम्हारे उस अंकल अमरसिंह के घर कूद गया था।

- तुम मुझे छोड़ मत देना राहुल...कभी
- रजनी ! मेरी जान...
तुम्हें सौ ग्राम क्या चाहिए ?
- तुम रोना मत राहुल अब
- ये आंसू नही है मेरी जान, यह तो प्यार का शरबत है।
- तुम्हारी आँखों में सौ ग्राम आंसू हैं राहुल।
 मेरे होंट गीले हो गए तुम्हारे आंसूओं से।
- ये आंसू बहुत कुछ कहते हैं जान।
 कल हम यहां से शहर की तरफ भाग जाएंगे और धर्मशाला में शादी करेंगे।

सौ ग्राम आंसूओं ने दोनों को पूरा भिगो दिया और लोहे की दुकान चुम्बन की दुकान में बदल गई।
निर्जीव आँसू कई देर तक बहते रहे।
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भाषा के अभाव में यदि इतना बडा निर्णय लिया जा सकता है तो बिना भाषा के सभी कार्य किये जा सकते हैं। अतः भाषा की आवश्यकता कहाँ रही?
Photos Brought to you by - Amar ujala & daily Hunt Newspaper. 
© Brijmohan Swami Beragi (2010-2017 season)

Comments

Unknown said…
बहुत बहेतरीन कहानी.....हास्य के साथ साथ अंध धार्मिको पर व्यंग्य........आपसी गुटबाजी की लड़ाईयो में धार्मिक साम्प्रदायिक भावनाये किस तरह प्रभाव डालती है और दूसरी तरफ इस सब से बेखबर कुछ प्रेमी जोड़े किस तरह अपनी अलग दुनिया में खोये रहते है....बडा ही सजीव चित्रण.......
Satpal Nayak said…
बहुत ही बेहतरीन कहानी है भाई
इस कहानी से सपष्ट होता है कि प्यार सच मे अंधा होता है।