तीसरा पिस्तौल
क्या यह जरूरी है कि पिस्तौल वाली सारी कहानियाँ मर्डर से शुरू करके लिखी की जाएँ? या फिर गर्दन पर हाथ मलते हुए किसी भौतिक विज्ञानी की शैली में लिखी जाएँ? कुछ कहानियाँ ऐसी भी होती हैं जो छुपी हुई विचाराधाओ और मरी हुई लाशों से निकल आती हैं। खैर....ये दोनों ही विषय मेरी समझ से बाहर थे और मैं लेखक के कहने पर सीधा जेल चला गया। जेल की दीवारें हमेशा मज़बूत, ऊंची और रोने वाले पत्थरों की बनी होतीं हैं जिन पर एशियन पेंट्स का कोई सुंदर कवर नहीं होता। जेल की दीवार के पीछे शायद रंग किया होगा और वहां पर सड़क भी होगी कोई, मुझे थोडा थोडा याद है, लालू प्रसाद जी ने एक जमाने में कहा था कि बिहार की सड़कें हेमा मालिनी के गालों की तरह चिकनी बनेंगी। मुझे इस जेल में यही सोचना होगा की वो कितनी चिकनी बन पाई? वहां कोई छोटा धागा भी नही था जिसे नाक में लेकर छींका जा सके और कठोर शब्दों में खुद को कहा जा सके - ' मुझे कोई याद कर रहा है।" वैसे जेल में धागा होता तो है, सिर्फ कागजों और फाइलों पर होता है। समूचा कारागृह भवन भले ही वास्तुनियमों के अनुसार बना हो, लेकिन वहां दिवार पर सामने टँगी चाबियो