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सौ ग्राम आँसू - एक कहानी

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यह जरूरी नही है की आँसुओं वाली सारी कहानियाँ रोने धोने से ही शुरू हों। उदहारण के तौर पर हम इसे  20 मिनट में त्वचा गोरी करने वाले नुस्खों से शुरू करेंगे। ---------------------- यह आश्चर्य होगा कि जब विनोद पंतालिया पचास रुपये को सौ रुपये में बदल रहा था,  ठीक उसी वक़्त रजनी त्वचा गोरी करने का एक बढ़िया रामबाण नुस्खा आज़मा रही थी सामने कीमती टेलीविज़न में बताया जा रहा था  इसे लिख लें और आज़माएँ- - " सबसे पहले सौ ग्राम.....चर्र्र्ड च्र्रर" और लाइट चली गई, टेलीविजन में त्वचा गोरी करने का रामबाण नुस्खा बताने वाली सुंदर कन्या कई देर तक टेलीविजन का आकार बनी रही। रजनी ने फोन उठाया - सर्दी की वजह से मेरी हिम्मत छूट रही है। - तो ? -तुम आ जाओ मेरी जान - मैं बिज़ी हूँ। - क्या?  तुम्हें मेरी याद नही आई ? - राहुल ! मुझे कुछ चाहिए !! - क्या ? - पता नहीं, पर सौ ग्राम ही चाहिए। फोन काट गया।  पर फोन का आविष्कार करने वाला महान वैज्ञानिक इस बात से अनजान ही था की  कहीं किसी घर के आगे एक आदमी मरकर लटकेगा और टेलीविजन  वाली कन्या इस बात से अनजान ही रही की एक लड़का पचास रूपए को

चौथा पिस्तौल

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यह कहानी, तीसरा पिस्तौल कहानी का दूसरा भाग है। पिस्तौल वाली सारी कहानियाँ मर्डर से शुरू तो नही होती लेकिन मर्डर के साथ खत्म जरूर हो जाती हैं।  1980 के समय की रामसे ब्रदर्स की सारी फिल्मों में लगभग एक सी स्टोरी होती थी।  खाली हवेली होती थी, मरे हुए लोग कब्र से उठ कर चले आ जाते,  हां कुछ भद्दी भद्दी चुड़ैलें भी थीं। और यहाँ भी सबकुछ प्लान के हिसाब से हुआ। ईलियास अभी जिन्दा था और सरकारी कागज़ों में दूसरा ईलियास , जो मर चुका था, वो दफन हो गया।  पांच सात महीने तक मैंने एक व्हीकल रिपेयरिंग की दूकान पर काम किया और हुलिया भी काफ़ी बदल लिया था।  इतने दिनों में कभी किसी जानकर  से बात भी नही की।  एक दिन एक दोस्त ने आकर ईलियास की खबर दी और कहा कि ईलियास तुमसे मिलना चाहता है।  दो दिन के सफ़र के बाद मैं वहाँ उसके ठिकाने पर पहुंचा।  मैंने ईलियास को नही पहचाना, वो काफ़ी कमज़ोर था लेकिन उसकी आंखें और चमक दमक मरने वाले ईलियास जैसे नही थी।  - आओ मेरे जिगरी यार!!! (ईलियास ने मुझे देखते ही अपनी बाहें मेरी गर्दन पर लपेट दीं) - कैसे हो ईलियास? - कैसे हो सकता हूँ तुम बिन, तुम

तीसरा पिस्तौल

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क्या यह जरूरी है कि पिस्तौल वाली सारी कहानियाँ मर्डर से शुरू करके लिखी की जाएँ? या फिर गर्दन पर हाथ मलते हुए किसी भौतिक विज्ञानी की शैली में लिखी जाएँ? कुछ कहानियाँ ऐसी भी होती हैं जो छुपी हुई विचाराधाओ और मरी हुई लाशों से निकल आती हैं।  खैर....ये दोनों ही विषय मेरी समझ से बाहर थे और मैं लेखक के कहने पर सीधा जेल चला गया। जेल की दीवारें हमेशा मज़बूत, ऊंची और रोने वाले पत्थरों की बनी होतीं हैं जिन पर एशियन पेंट्स का कोई सुंदर कवर नहीं होता। जेल की दीवार के पीछे शायद रंग किया होगा और वहां पर सड़क भी होगी कोई, मुझे थोडा थोडा याद है, लालू प्रसाद जी ने एक जमाने में कहा था कि बिहार की सड़कें हेमा मालिनी के गालों की तरह चिकनी बनेंगी।  मुझे इस जेल में यही सोचना होगा की वो कितनी चिकनी बन पाई? वहां कोई छोटा धागा भी नही था जिसे नाक में लेकर छींका जा सके और कठोर शब्दों में खुद को कहा जा सके  - ' मुझे कोई याद कर रहा है।" वैसे जेल में धागा होता तो है, सिर्फ कागजों और फाइलों पर होता है। समूचा कारागृह भवन भले ही वास्तुनियमों के अनुसार बना हो, लेकिन  वहां दिवार पर सामने टँगी चाबियो

डायरी वाली लड़की

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उस लड़की को वक़्त का कोई तकाज़ा नही था। बाकि लड़कियों की तरह नही थी/ उस मेन्टल ऐसायलम की खिड़की से टँगी/लटकी/झूलती रहती। क्यों कि वह खिड़की/एक गली दिखाती थी/ एक गली थी/ दुर्धटना सम्भावित क्षेत्र की जैसी। जहां से वो लड़का सिर्फ एक बार मिलने आया। उसके हिसाब से घड़ियों में सेकंड की सूई/ कलेंडर की तारीख बताती होगी। मिनट की सूई सालों को/ और धण्टे की सूई उसके हिसाब से घूमती ही नहीं थी। वह लड़की वक़्त से सौ साल आगे या दो सौ साल पीछे की सोचती। क्यूकी/ इस दुनिया में उसका ऐसा क्या था/ जो सोचे उसके दुबले से जेहन में/ दूसरी दुनिया के विचार आते थे। जैसे यह अहसास/ कि कोई जानवर या विचित्र चीजें शरीर के भीतर है। उस रात वो रोइ/ बालों को नोच लिया/ वो आसुँ भी बहाए जो उसकीआँखों के थे भी नहीं। आज वो लिखने लगी फिर से/ अपनी आधी छुट्टी कविता को/ एक कच्छी पेन्सिल, जो पिछले दो सालों से उसने अलमारी में छुपाई थी, इसके साथ एक पुरानी डाईरी। :" इतना कुछ हो रहा है दुनिया में,क्या तुम मेरे नही हो सकते थे.?" एक दो शब्द छापकर वो रुकी सर्दी में शिफॉन के साड़ी पर कत्थई कार्डिगन, उ

मरने की एक्टिंग (कविता)

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आप कभी समझ ही नही पायेंगे कि फलक और आफरीन/ वही बच्चियाँ हैं जिन्हें निर्दय समाज की साइकोलोजी ने 'मार' डाला... किसी सफ़ेद रंग के दिन में हम लोग मर चुके होंगे तब तक कुछ लिख लेंगे हम। मैं वास्तव में बच्चा नही रहा, इतना समझदार हूं कि मौरीद बरघूती की एक कविता की एक पंक्ति उधार ले सकूँ। हम जरूर जानना चाहेंगे कि बलात्कार के वक़्त इंसान जैसी शक्ल को हंसी आती है, या नहीं। (अगर आपके पास इसका जवाब हो तो जरूर बताइये) लादेन के घर की अंतिम माचिस क़त्ल हो गई है/ सादगी अपनाएं आत्मघाती हमलों में हज़ारों लोग मरकर खुश हो गए हैं ( अपनी अँगुलियों को मत भूलें) ऐसी ही किसी रात के सोहल्वे पहर में लादेन का कटा हुआ हाथ/ आपकी कमर पर "गुदगुदी" करेगा मैं उस हाथ से पूछता हूँ कि आप इतने दिन कहां ग़ायब रहे? थोडा बारिकी से देखा जाए तो हत्या एक अनुभूति है जिसमें इंसान डूब जाता है. आप अपने क्रांतिकारी विचारों को अपने आलिंद-निलय चक्र में पीसकर मार देना वो किसी काम नही आ पाएंगे आपके विचार ज्यादा दिन चल नही सकते/आपके साथ इसलिए लंबी दूरी तक ले जाना हो तो उन्हें (विचारों को